Sunday, March 27, 2011

us sankari gali me

Wednesday, January 21, 2009

jindagi: एक गुजारिश हर माता पिता से

jindagi: एक गुजारिश हर माता पिता से

jindagi: एक गुजारिश हर माता पिता से

jindagi: एक गुजारिश हर माता पिता से

एक गुजारिश हर माता पिता से

बहुत दिनों से एक विचार मेरे मन को लगातार झकझोर रहा है । अभी कुछ दिनों पहले की बात है, मै अपने एक बहुत अच्छे मित्र की "जिंदगी (ये कहना ज्यादा उचित होगा क्योंकि गर्लफ्रेंड शब्द मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत हल्का लगता है) से मिल कर आया । मेरा ये मित्र इस वक्त अजीब सी दुविधा में उलझा हुआ है जो शायद हर एक प्यार करने वाले के साथ होती है । ये न तो अपने माता पिता को निराश कर सकता है और न ही इस लड़की के बिना खुश रह सकता है। अगर वो अपने माता पिता की इच्छा के विरुद्ध जाए तो ये उनका अनादर होगा और अगर उनकी बात माने तो शायद पूरी जिंदगी भर एक कसक रह जायेगी । पता नही क्यों हमारे माता पिता हमारे और सभी निर्णय में हमारे साथ होते हैं चाहे वो पढ़ाई के बारे में हो या फिर कैरियर के बारे में हो, हमारे हर निर्णय में उनका साथ बिना किसी शर्त के मिलता है; हर बार वो हमें हौसला देते हैं जाओ बेटा आगे बढो हम तुम्हारे साथ हैं, अगर तुम कही गिरे भी तो हम तुम्हे संभालेंगे , पर जब हमे अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला लेना होता है तो वो पीछे हट जाते हैं और कहते हैं की जो कुछ भी होगा वो तुम्हारी जिम्मेदारी होगी। मैं ये नही कहता की माता पिता इस बारे में सही निर्णय नही ले सकते पर जिस तरह वो अपने बच्चे के और सभी निर्णय पर साथ होते हैं , इस फैसले पर भी साथ हो सकते हैं। वो अगर पूरे सहयोग के साथ बच्चे को दिशा दिखाएँ तो इस निर्णय की इस दुविधा से बचा जा सकता है । वही माता पिता शाहरुख़ की हौसले की तारीफ़ करते हैं की उसने एक हिंदू लड़की से शादी की पर अपने बच्चे के मामले में ठीक इसका उल्टा व्यव्हार करते हैं , वो भी उस दिखावटी समाज के उन लोगो के लिए जो शायद ही कभी जरूरत के वक्त काम आए । उन लोगो की संतुष्टि के लिए अपने बच्चों की खुशी का गला घोंट देते हैं जिनका उनकी खुशी या गम से कुछ लेना देना नही होता। मेरी इस ब्लॉग को पड़ने वाले से बस एक ही गुजारिश है की अगली बार जब अपने समाज को संतुस्ट करने के लिए कोई फैसला लें तो एक बार उसकी कीमत जरूर देख ले; ये जरूर देखें की उनके लिए क्या ज्यादा जरूरी है चंद बनावटी लोगो की दिखावे की संतुष्टि ; चंद रुपये या अपने जिगर के टुकडों की खुशी । एक बार अपने बच्चों से कह कर के तो देखिये जा बेटा मैं तेरे हर फैसले में तेरे साथ हूँ फिर वो भी आपकी इच्छाओं का कितना ख्याल रखता है।

Tuesday, October 14, 2008

कल और आज

आप सोच रहे होंगे की ये कैसा शीर्षक है ? चलिए शायद इस ब्लॉग के अंत तक आपको पता चल जाए। मुझे आज भी वो दिन याद है जब मेरी साइकिल आई थी, उस दिन की खुसी को शब्दों में बयां करना बहुत कठिन है पर जब मै इसकी तुलना कुछ दिन पहले खरीदी गई कार से करता हूँ तो न जाने क्यूँ खुसी का एहसास नही होता। क्या हम अब किसी बहुत बड़ी खुसी के इंतज़ार में जिंदगी की उन तमाम छोटी छोटी खुशियों को नजरअंदाज करते जा रहे हैं। क्या हमारी बोद्धिकता ने हमारे जीवन को को एकदम से नीरस बना दिया है ।

Friday, July 4, 2008

छोटी छोटी खुशियाँ

बारिश की बूँदें, आकाश में बादल, हरी घांसों से भरा मैदान, ये सब कुछ ऐसी चीजें हैं जो शायद हमे वो न दे जो हमें चाहिए, शायद ये सब एक बड़ी खुशी की जगह न ले सके पर ये छोटी छोटी बातें हमे जीना सिखाती हैं वो भी हंसते हुए। मुझे आज भी याद है एक वो समय भी था जब मुझे ये सारी चीजें किसी भी तरह से आकर्षित नहीं करती थीं ।
एक बार मैंने haribansh rai bacchan की एक कविता padhi थी जो कुछ इस तरह से थी
जो बीत गयी वो बात गयी
ambr के aanan को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
पर अपने टूटे तारों पर
कब ambar शोक manata है
मेरी nakaratmak सोच की hadh देखिये की मैंने इसके आगे लिख दिया
हाँ अपने टूटे तारों पर ambar भी शोक manata है
अपने megho के आँखों से वो भी neer Bahaata है
फिर मैं कैसे कह दूँ जो बीत गयी वो बात गयी ।
सो, दोस्तों इस तरह की nakaaratmakta से bachen और जिंदगी के हर एक pal को khusiyon से bahr दे ।

Friday, June 20, 2008

निर्णय लेने से पहले

जिंदगी कभी कभी ऐसी परिस्थितियौं से दो चार कराती है कि निर्णय लेना काफी दुश्वार हो जाता है। क्या सही है क्या ग़लत है इस ऊहापोह में ही उलझ कर रह जाते हैं। हम अक्सर किसी परिस्थिति या व्यक्ति को मात्र एक घटना के आधार पर सही या ग़लत से नवाज़ देते हैं। जबकि मुझे लगता है कि हर चीज़ को बिना समग्रता से देखे वास्तविक नतीजे पर पहुँचाना ग़लत होगा। जैसे, हो सकता है कि एक कातिल , प्यारा पिता हो । कभी कभी हम परिस्थितियौं के शिकार हो जाते हैं और हम वो कर जाते हैं जो शायद हम नहीं होते हैं, कभी तो ये अच्छा होता है और कभी बुरा। तो जरूरत इस बात की है कि हम एक समग्र नजरिया रखें।

Monday, June 2, 2008

मनसिज तीर चलता है, प्रेम स्वपन दिखाता है,

फागुन मे लाज हीना हैं , मेला घूमते से पात

आवारा आज बने होली में बंजारा तन मन के गात,

रंग कुंडल आज पहन मदिर हो ये फागुनी प्रात

मेरी कॉलेज लाइफ

फ़िर कभी